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Tuesday, December 25, 2012

जब दवा ही दर्द देने लगे तो बंद करना ही बेहतर होता है ---


यदि बुखार हो जाये तो हम तुरंत दवा लेने लगते हैं। लेकिन जब लम्बे समय तक दवा लेने के बाद भी बुखार न उतरे और सारे टेस्ट भी सामान्य आयें तो डॉक्टर सारी दवाएं बंद कर देते हैं और बुखार उतर जाता है। इसे हम ड्रग फीवर कहते हैं।

कुछ ऐसा ही हो रहा है गैंग रेप के विरुद्ध आन्दोलन में। गुंडागर्दी के विरुद्ध आक्रोश का प्रदर्शन करते करते कहीं न कहीं हम स्वयं ही पथ भ्रष्ट हो गए हैं।  राजपथ पर होने वाले दैनिक प्रदर्शन में अब असामाजिक तत्वों का प्रवेश हो चुका है। जो आन्दोलन एक पीड़ित को न्याय दिलाने और सुस्त प्रशासन को जगाने के लिए स्वत: आरम्भ हुआ था , अब एक  तमाशा बन कर रह गया है। मासूम भीड़ में भेड़िये भी घुस गए हैं। जिस अत्याचार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं , वही स्वयं भी कर रहे हैं। बेशक गैंग रेप की इस घटना का मुख्य कारण दिल्ली की सड़कों पर सुरक्षा की कमी है, लेकिन क्या अकेली पुलिस को दोष देना सही है ? क्या हमें आत्म निरीक्षण नहीं करना चाहिए ?   

पिछले कुछ दिनों से अख़बारों ,  टी वी और फेसबुक आदि पर सब जगह पुलिस के अत्याचार दिखाए जा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पुलिस गलत कर रही है ? अंधाधुध दौड़ लगाती भीड़ को क्या राष्ट्रपति भवन में घुस जाने देना चाहिए था ? अगर नहीं रोका जाता  तो क्या हो सकता था , यह कल्पना मात्र ही कष्टदायक है। 
कारों के शीशे तोड़ना, बसों में आग लगाना , और पब्लिक प्रोपर्टी को हानि पहुंचाकर न्याय नहीं हासिल किया जा सकता। दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल सुभाष तोमर की क्या गलती थी जो भीड़ ने पैरों तले रौंदकर उसकी जान ले ली ?  क्या यह वहशीपन नहीं है ? उसे कौन न्याय दिलाएगा ? कितनी ही लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ हो रही है , क्या नज़र नहीं आता  ? 

अब समय आ गया है , यह पागलपन बंद होना चाहिए। गैंग रेप की पीड़ित युवति अभी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। आवश्यकता है उसकी जिंदगी की दुआ मांगने की। जनता की दुआ में ताकत होती है। डॉक्टर अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में तोड़ फोड़ का खेल छोड़कर हमें सकारत्मक कार्य करते हुए शांति बनाये रखकर ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस बहादुर लड़की की जिंदगी बच जाये।  

आज क्रिसमस है। मैरी क्रिसमस तभी हो सकता है जब युवति की स्थिति में सुधार आये।  प्रार्थना कीजिये।  
     

26 comments:

  1. सही लिखा आपने, पूरी व्यवस्था में ही आमूल चूल परिवर्तन अब समय का तकाजा हो गया है.

    रामराम

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  2. रविवार को इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों से टकराव में घायल दिल्ली पुलिस के सिपाही सुभाष तोमर की आज सुबह मौत हो गई है...उसे विनम्र श्रद्धांजलि...

    सोचना होगा कि हम कहां जा रहे हैं...क्या हम इतने दिशाहीन हो गए हैं...क्या सुरक्षा ही एक पहलू रह गया है...इस पूरे प्रकरण को सिर्फ एक कोण से नहीं समग्र परिवेश मे देखना होगा...आज इसी प्रकरण से जुड़े एक पहलू पर अपने ब्लॉग पर कविता लिखी है...जल्दी वासना की इस विकृति के कोढ़ पर परत-दर-परत लिखने की कोशिश करूंगा...

    जय हिंद...

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    1. इस पूरे प्रकरण को सिर्फ एक कोण से नहीं समग्र परिवेश मे देखना होगा...बहुत सही।

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  3. ....राजनीति दिशाहीन होगी तो अराजकता बढ़ेगी ही !

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    1. कारण , कुछ भी हो अराजकता को सही नहीं ठहराया जा सकता।

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  4. ्बिल्कुल सही लिखा।

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  5. सार्थक और जरुरी पोस्ट

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  6. भेड चाल के चलते हालात काबू से बाहर होते जा रहें थे ...कुछ गलती पब्लिक और कुछ गलती सरकार और पुलिस की भी है |

    और अभी अभी की न्यूज़ में देखा उस लड़की दामिनी (बदल हुआ नाम )की स्थिति गंभीर हैं ....अंदर का खून बंद नहीं हो रहा ...जो हुआ वो दुखद है ये सब कुछ और एक सबक है हम सब लोगों के लिए कि बस आगे से सचेत रहो

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  7. दरअसल ये संवेदनहीनता है उन लोगों की जिनको दिशा देनी चाहिए ... पुलिस, समाज ओर आंदोलनकारियों को ऐसे माहोल में ...
    आज के दिन प्रार्थना है प्रभू से की दामिनी को उबरने का साहस दे ...

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  8. बस इतना ही कहूंगा की अराजक सभी है . कल शाम को जो अराजकता दिल्ली की सडको पर फैलाई गई वो भी सरकार द्वारा प्रायोजित लग रही थी शाम ६.३० का ऑफिस से निकला रात ११.३० बजे घर पहुंचा ! अरबो रुपये का जो तेल दिल्ली की सडको पर बेकार गया वह हमारी सरकार की संवेदन हीनता थी! और शुरुआती प्रोटेस्ट एक सिविलाइज्द मैनर में चल रहे थे अराजक तत्वों को beech में इसी लिए घुसाया गया ताकि आन्दोलन को पत्री से उतारा जा सके अगर ये सख्त कानून लायेंगे तो इनके ज्यादातर नाते-रिश्तेदार तो गए samjho काम से

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  9. इन सारी स्थितियों की जिम्मेदार केवल और केवल लचरऔर संवेदनशून्य गवर्नेंस है!

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  10. यदि अभी भी युवा शक्ति प्रदर्शन नहीं करती तो यह केस तो कब का भूल चुके होते ... आए दिन रोज़ ही ऐसे हादसे हो रहे हैं ... आज भी हो रहे हैं ... कभी तो पानी सिर से ऊपर निकलेगा ही .... भगदड़ में पुलिस कर्मी मारा गया उनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि .... जिस तरह से सरकार ने रुख अपनाया वो कहीं से जायज़ नहीं लगता ...

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    1. आन्दोलन जारी रहे लेकिन शांति से।
      जेसिका लाल केस में शांति से ही काम चल गया था।
      हिंसा में असामाजिक तत्व नाजायज़ फायदा उठाते हैं।

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  11. आपकी सद्य टिप्पणियों का अतिरिक्त आभार .आपकी टिप्पणियाँ हमारी धरोहर हैं .

    भाई साहब टिपण्णी स्पेम में गईं हैं कई .निकालें . रैप करतीं हैं कम्नेट्स को टिप्पणियाँ .इसमें हमारा हाथ टिप्पणियों के साथ नहीं है .यकीन मानिए .शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का जिसने हमें

    हरजाई स्पेम बोक्स की याद दिलाई .

    कुछ समय बाद एम बी ए भी मिलेंगें हेयर डू केन्द्रों की समन्वयन के लिए .अमरीका में तो बा -कायदा एपोइटमेंट लेके जाना पड़ता है केश सज्जा करने वालों के पास .लाइसेंस भी होते सबके पास

    प्रमाणपत्र भी .अफ़्रीकी अमरीकी महिलायें इस कर्म में माहिर हैं .केश सज्जा कलाकार आपके सौन्दर्य की रीढ़ रहा है रहेगा .आज दुल्हन ब्यूटी सैलून से ही तशरीफ़ लाती हैं .

    हम स्पेम बोक्स से परेशान है हमारे साथ सब जगह ऐसा होने लगा है .कहीं यह कपिल सिब्बल की शरारत तो नहीं है जो सेंसर की बात करते हैं सोशल मीडिया


    पूरी सदाशयता से आपने लिखा है जो भी लिखा है दोष चोर का नहीं चोर की माँ का है जो संसद में बैठी है जिनके अराजपाट ने आज यह स्थिति पैदा कर दी .पुलिस को जिसने कथित वी आई पी

    सुरक्षा में 15-20

    %खपाया हुआ है .गृह मंत्री जी युवा भीड़ को नक्सली /माओवादी कहतें हैं .साथ ही सोनिया का आन्दोलनकारियों से मिलना उन्हें बड़ा दिव्य लगता है जैसे सोनिया अवतरण इस शती की अप्रतिम

    घटना है .

    हम भी आशंकित है आन्दोलन में सूराख करने वालों से जिनमें कांग्रेसी ही सबसे आगे हैं .कल तक जो देश के सर्वोच्च शक्ति पीठ सेना के प्रमुख थे आज उन्हें हिंसा भड़काऊ बतलाकर उनपर

    मुकदमा चलाया जा रहा है .स्वामी राम देव को भी हिंसा भड़काने के लिए निशाने पे लिया गया है .

    पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार निर्दोषों पर हुई ज्यादती को कोलेटरल डेमेज बतला रहें हैं .इस भले आदमी को यह नहीं मालूम अंग्रेजी भाषा कन्वेंशन से चलती है Collateral damage शब्द रूढ़ हो

    चुका है सैन्य हमले में

    हुई नागरिकों की जान माल की नुकसानी के लिए भू कंप बाद की क्षति के लिए .यह कोलेटरल डेमेज नहीं था सत्ता -शक्ति प्रदर्शन था .

    और ज़नाब यह गृह मंत्री भी आरक्षित कोटे का है .

    निर्भय को बचाया नहीं जा सकेगा यह आप भी जानतें हैं उसे उसकी जिजीविषा ने ही जीवित रखा हुआ है कहीं इन्तेस्तिनल इम्प्लांट मिल जाए तो और बात है .चार सर्जरी हो चुकी हैं इस नन्नी सी

    जान की .निर्भय प्रतीक है इस लड़ाई का ,अपराध तत्वों की हार को पूरे देश की धड़कन और दुआ उसके लिए है .होई है वही जो राम रची राखा ...

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    1. वीरुभाई जी, पहले सेप्सिस से बच जाये, यही दुआ करते हैं ।
      ट्रांसप्लांट अभी दूर की बात है।
      बाकि तो बड़े लोग जाने।

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  12. बेहतर लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

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  13. पहले दिन ही सरकार जनता के मध्‍य क्‍यों नहीं गयी? वो चाहती ही यही है कि कैसे भी लोग उग्र हों और फिर जिम्‍मेदारी जनता पर ही डाल दी जाए। क्‍या ओबामा देश के समक्ष नहीं गए? जनता को उग्र भी इसी सरकार ने किया। जनता तो शान्ति से प्रदर्शन कर रही थी। भगदड में एक जवान आहत हुआ तो इसका जिम्‍मेदार पिटते युवा कैसे हो गए? कभी ऐसी निकम्‍मी सरकार के लिए भी कुछ उपदेश लिख दिया करिए।

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    1. हम और आप भी तो सरकार ही हैं। :)

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  14. प्रदर्शन में असामाजिक तत्वों का प्रवेश,एक तमाशा बन कर रह गया है। भीड़ में भेड़िये घुस कर जिस अत्याचार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं,वही स्वयं भी कर रहे हैं। बेशक घटना का मुख्य कारण दिल्ली की सड़कों पर सुरक्षा की कमी है,लेकिन सिर्फ पुलिस को दोष देना उचित है-?पहले हमें आत्म निरीक्षण करना चाहिए,,,,

    recent post : समाधान समस्याओं का,

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  15. क्या कहें, कहाँ किसे दोष दें ...बस दामिनी ठीक हो जाये और दोषियों को कठोर सजा मिले...

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  16. अराजकता के दुकानदार तो अपनी दुकान फैलाने का मौका ढूंढते ही रहते हैं - लेकिन देश में प्रशासन व्यवस्था होता तो उनकी दुकान नहीं चल सकती थी। भारत की एक नहीं, अधिकांश समस्याओं की जड़ में एक ही बात है - प्रशासन, न्याय, व्यवस्था की अनुपस्थिति। और इसे दूर करने की ज़िम्मेदारी किसी सरकार को तोलेनी ही पड़ेगी।

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  17. डा0 साहब, जैसा की मैंने कल अपनी टिपण्णी में कहा था की अराजक हमारी यह सरका ज्यादा हो गई है। यह टिप्पनी कल रात ही लिखना चाहता था किन्तु आलस कर गया। सबसे बड़ा तथा कथित कथित लोकतंत्र, जिस लोकतंत्र का मूल मन्त्र होता है जनता की आवाज, और यदि आवाज न सुनी जाए तो विरोध प्रदर्शन। क्या इस सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार को यह बताने की जरुरत है कि जिस जगह विरोध पर्दर्शन हो रहे हो। वहाँ किसी भी अप्रिय घटना की संभावना के मध्य नजर हमेशा उचित मात्रा में एम्बुलेंस में ही डाक्टर उपलभ्द रखे जाएँ ताकि घटनास्थल पर ही घायल को उस्चित चिकत्सा सुविधा मुहैया करा दी जाए ? जब कोइ बड़ा नेता कहीं चुनावी रैली करता है तो वहाँ कैसे ये पूरी सीएम्ओ की फ़ौज खडी रखते है? जैसा की मृतक के बेटे ने आरोप लगाया की 3 दिन से उनका हाल पूछने कोई भी नहीं आया। फिर यह नाटक बाजी ? ऐसा लगता है की सर्कार बचने के लिए खुद ही कोई बली का बकरा ढूढ़ रही थी और दुर्भाग्य्बश तोमर मिल गए। मुझे नहीं मालूम की यह दवा कितना सही है किन्तु हमें जैसे हम सर्कार से सूनी अन्य नी बातों पर विश्वास कर रहे है, इस पर भी हमें विश्वास करना होगा ;
    सिपाहीसुभाषतोमर की मौत के मामले में यमुना विहार मेंरहने वाले प्रत्यक्षदर्शी योगेंद्र ने खुलासा करते हुए दिल्लीपुलिस की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया।टीवी चैनल को चश्मदीद योगेंद्र ने बताया कि सिपाही तोमरउनके सामने ही भागते हुए आए थे और गिर पड़े। उनकीपिटाई किसी प्रदर्शनकारी ने नहीं की थी। यह खुलासा उन्होंनेमंगलवार रात एक टीवी चैनल से किया। योगेंद्र के साथ अन्यलोगों ने सिपाही की मौके पर मदद भी की। दर्द दूर करने केलिए उनकी छाती मली, जूते उतारकर उनके तलवे सहलाए।फिर पुलिस की मदद से अस्पताल लेकर गए। देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है यहाँ इंसान की कोई कीमत ही नहीं है हर को पांसे सजाने में व्यस्त है।

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    1. पूरी घटना दुर्भाग्यपूर्ण है।
      सच्चाई क्या है , यह सामने आनी ही चाहिए।

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  18. लोकतन्त्र की इतनी दवायें दे दी गयी हैं कि हम भूल गये कि असली मर्ज क्या था, अब तो दवाओं का ही दर्द है।

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  19. दर्द है तो टपकेगा ही..बादल से हो या आँखों से..गुस्सा है तो निकलेगा ही..। आसान नहीं है गुस्से का भीड़ की शक्ल में जुट जाना बगैर किसी अनहोनी घटना के। भीड़ कभी समझदारी से काम नहीं करती..दिल से गुस्साई होती है..भीड़ न गुस्साए..गुस्साए भी तो निंयत्रित किया जाये..यह जिम्मेदारी तो उन्हींं के सर जाती है न..जो भीड़ के रहनुमा होने का दावा करते हैं। अब नियंत्रण का यह तरीका तो अच्छा नहीं था।

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  20. "खून से लथपथ देह ..आँखों में भरे नीर ....
    ऐ ! कोंख से पैदा होने वालो, वो तुम्हे पुकार रही थी ---"

    दुर्भाग्य पूर्ण दुर्धटना..

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