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Sunday, September 29, 2013

यहाँ आम आदमी भी आम से ज्यादा खास होता है ---


गत सप्ताह लखनऊ का दौरा कर, इस सप्ताह चंडीगढ़ में दो दिवसीय सी एम् ई कम वर्कशौप में शामिल होने का अवसर मिला जिसमे स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बंधित कानूनी विषयों पर चर्चा और विचार विमर्श का कार्यक्रम था। सुबह ७ .१० की स्पाइस जेट की फ्लाईट ७ बजे ही हवा में थी और जहाँ पहुँचने का समय ८.१५ का था ,  वहीँ पौने आठ बजे ही चंडीगढ़ पहुँच गई थी। समय से पहले ही उड़ान भरने और गंतव्य स्थान पर पहुँचने को निश्चित ही समयानुकूल तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक सुखद अनुभव तो रहा।
दो दो की पंक्तियों में छोटी छोटी सीटों वाला यह विमान छोटा सा लेकिन बड़ा क्यूट सा था। साफ सुथरा विमान देखकर सचमुच बड़ी प्रसन्नता हुई। हालाँकि इसमें एयर हॉस्टेस की जगह सवा छै फुट की हाईट के दो ज़वान विमान परिचारिका का काम कर रहे थे। यदि उनकी ऊंचाई और एक आध इंच ज्यादा होती तो शायद विमान की छत से टकरा जाते। पौन घंटे की फ्लाईट में खाने की भी कोई विशेष आवश्यकता न होने से समय यूँ ही पेटी बंद करने और खोलने में कब निकल गया , पता ही नहीं चला।

वापसी में कालका शताब्दी से आने का कार्यक्रम था। प्रथम श्रेणी की टिकेट न मिलने के कारण चेयर कार से ही काम चलाना पड़ा। सोचा तो यही था कि ट्रेन की सीटें विमान की इकोनोमी श्रेणी की सीटों जितनी तो होंगी ही। साइज़ तो बेशक उतना ही था लेकिन सीटों पर चढ़े कवर्स की हालत देखकर बड़ा खराब लगा। ज़ाहिर है , हमारे देश में आम और खास में सदा ही अंतर रहा है। इस श्रेणी में यूँ तो सफ़र करने वाले निश्चित ही आम आदमी ही थे लेकिन शायद हमारे देश में असली आम आदमी वे होते हैं जो द्वितीय श्रेणी या अनारक्षित डिब्बों में यात्रा करते हैं।

ट्रेन का सफ़र मनोरंजक भी हो सकता है और कष्टदायी भी। साढ़े तीन घंटे के पूरे सफ़र में एक बच्चे और एक युवक ने तमाशा बनाये रखा। दो साल की बच्ची ने अपने मां पिताजी की नाक में दम कर दिया। कभी मां की उंगली पकड़ डिब्बे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक की सैर , कभी पिता के साथ। उस पर तलवार की धार सी पैनी आवाज़ में चीं चीं करती बच्ची ने सचमुच हमें भी नानी याद दिला दी। कहने को तो बच्चे भगवान का ही रूप होते हैं और अच्छे और प्यारे भी लगते हैं , लेकिन असमय और अवांछित प्यार भी कहाँ हज्म होता है। उधर पीछे वाली सीट पर बैठा एक युवक जो बिजनेसमेन था , लगातार मोबाईल पर बात किये जा रहा था।  कुछ समय बाद वह खड़ा हो गया और द्वार के पास खड़ा होकर बात करता रहा। लगभग ढाई घंटे तक वह लगातार बात करता रहा। उसका और उसके फोन का स्टेमिना देखकर एक ओर हम हैरान भी थे , वहीँ दूसरी ओर उस पर दया सी भी आ रही थी क्योंकि फोन पर वह बिजनेस की परेशानियाँ भुगत रहा था। इस बीच बाकि यात्री तो तरह तरह के पकवानों का आनंद लेते रहे और वह बेचारा माल की सप्लाई , ट्रकों का प्रबंध और पैसे के इंतज़ाम की ही बात करता रहा। आखिर उसके फोन की बैटरी जब ख़त्म हो गई , तभी वह अपनी सीट पर बैठा। तब भी उसने मोबाइल को चार्जर पर लगाया और फिर बात करने लगा। न खाया , न पीया , बस बात ही करता रहा।

हम भी ढाई घंटे तक बच्ची के मात पिता और युवक के माथे पर पड़ी एक जैसी शिकन को देखते रहे और सोचते रहे कि जिंदगी भी कितनी कठिन हो सकती है। यह दृश्य तो ऐ सी चेयर कार का था, फिर जाने साधारण श्रेणी के डिब्बों के यात्रियों का क्या हाल होता होगा। यह सोचकर ही असहज सा महसूस होने लगता है।

              

15 comments:

  1. यात्रा वृत्तांत की सुंदर प्रस्तुति !!!

    RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

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  2. Aam aadmi ko bhi,khas mahsus karane wali ,seva pradata kampaniya hi,bulandi ko chhuti hi

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  3. वैसे आप अपने सामने किसी को बोलने कहाँ देते हैं ...कितने ख़ास थे वो .....:-))))

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  4. तरह तरह के लोग यहाँ हैं :)
    शुभकामनायें !!

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  5. अरे अभी वर्धा से लौटते वक्त हम सभी यात्रियों ने ऐसे ही एक उधमी बालक को झेला जो बात बात पर हम सभी को झापड़ मार दूंगा बोलता था -ऐसा हंगामा मचहाये रक्खा कि लोगों की नींद हराम हो गयी

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  6. यात्रा में काफी नवीन अनुभव होता है ,है ना ?
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  7. द्वतीय श्रैणी की यात्रा में हो सकता जान बच भी जाए....परंतु सधारण क्लास में चलना सिर्फ गांधी जी के बस की बात थी...

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  8. पहले के राजा /महाराजा ऐसे ही तो वेश बदलकर घूमते हुए आम आदमी की परेशानियों का पता लगाया करते थे !

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  9. बहुत अधिक करने के प्रयास में सब गुड़गोबर कर जाते हैं कभी कभी, न्यूनतम पर व्यवस्थित होना चाहिये कोई भी तन्त्र

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  10. “जाने साधारण श्रेणी के डिब्बों के यात्रियों का क्या हाल होता होगा। यह सोचकर ही असहज सा महसूस होने लगता है।”
    ...
    ...
    एक बार कैमरा लेकर स्लीपर क्लास की यात्रा कर डालिए। रेल की असली छवि तभी देख पाएंगे।
    अभी तो आपने जो बताया वह सुखी जीवन की छोटी-छोटी परेशानियाँ हैं।

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    1. सही कहा. तभी तो कह रहे हैं कि हम आम होते हुए भी आम से खास हैं.

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  11. अक्सर ऐसे हालात तो पैदा होते ही रहते हैं.

    रामराम.

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  12. हर तरह के लोग होते हैं संसार में ... मेरा तो मानना है बस मज़ा लेना चाहिए अगर आप कुछ कर नहीं सकते तो ...

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