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Monday, May 25, 2015

खाली दिमाग से मज़े लेकर देखने वाली फिल्म है -- "तनु वेड्स मनु रिटर्न्स"....




अक्सर ट्रकों पर लिखा देखा होगा -- दिल्ली , यु पी , पंजाब एंड हरियाणा ! 

कल खचाखच भरे हॉल में बैठकर इन्ही राज्यों की पृष्ठभूमि में बनी फिल्म "तनु वेड्स मनु रिटर्न्स" देखी। एक अर्से के बाद हीरोइन को डबल रोल में देखा। फिल्म पूर्णतया कंगना रनाउत की फिल्म है। एक लन्दन रिटर्न्ड आधुनिका और एक हरियाणवी एथलीट के रूप में दोनों ही रोल्स में खूब जमी है। अधिकांश पात्र देहाती दिखाए गए हैं , भले ही वे पंजाब के हों , यु पी या हरियाणा के। कुल मिलाकर एक हल्की फुल्की मनोरंजक फिल्म है जिसे परिवार के साथ देखा जा सकता है। फिल्म के अंत में सभी के चेहरे पर हंसी और ख़ुशी नज़र आ रही थी।

लेकिन पिछले हफ्ते पीकू जैसी क्लास फिल्म देखने के बाद इस फिल्म में दिमाग बंद ही रखना पड़ा। फिल्म में स्टोरी लाइन रास्ता भटक जाती है। अंत में तो ऐसी खिचड़ी बन जाती है कि समझ में नहीं आता कि खाएं या पीयें । फिल्म के शुरू में दिमाग के डॉक्टर्स को दिमाग से खाली दिखाया गया है । बाद में हरियाणा के जाटों की मिट्टी पलीद करके रख दी। हैरानी है कि हरियाणा के जाटों ने अब तक इस पर शोर नहीं मचाया। कंगना को हरियाणवी बोलते सुनकर हंसी कम रोना ज्यादा आ रहा था। उसकी नेजल टोन और मोनोटॉनस लहज़े ने भाषा का सत्यानाश कर दिया। थोड़ी और मेहनत करती तो नतीजा और अच्छा हो सकता था।

कुल मिलाकर खाली दिमाग से मज़े लेकर देखने वाली फिल्म है।

Monday, May 18, 2015

हर इंसान एक छोटा मोटा साइकोलॉजिस्ट होता है ---


वैसे तो सायकॉलॉजी अपने आप में एक पूरा सब्जेक्ट है और एक  साइकोलॉजिस्ट ही ह्यूमन सायकॉलॉजी को बेहतर समझ सकता है।  लेकिन हमने देखा है कि आंशिक रूप से ह्यूमन सायकॉलॉजी को लगभग सभी इंसान समझते हैं।

कई साल पहले की बात है।  तब हम पास की मार्किट में एक नाई की दुकान पर जाकर बाल कटवाते थे। एक दिन बाल काटते काटते युवा नाई बोला -- सर मैंने रिसर्च करके एक बहुत ही बेहतरीन फॉर्मूला खोज निकाला है , बालों को मज़बूत करने का। इससे दो सप्ताह में ही आपके बाल आपकी मसल्स की तरह स्ट्रॉन्ग हो जायेंगे। अभी तक हम उसकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे , लेकिन उसकी यह बात सुनकर अचानक हमें एक अजीब सी ख़ुशी का अहसास हुआ।  आखिर अपनी तारीफ़ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता।  अब हमने शीशे में झाँका और उसकी बात का आंकलन करने लगे।  ज़ाहिर था , उसकी कही बात असर दिखा रही थी क्योंकि अब हम थोड़ा और अकड़ कर बैठ गए थे।  खैर , उस दिन तो हमने बाल कटवाये और अगली बार सोचने का वादा किया।

अगले बार फिर उसने फिर अपने फॉर्मूले के बारे में याद दिलाया और कहा की एक बार ट्राई करके देखें।  इस बार भी किसी तरह हमने उसको टाला।  लेकिन जब तीसरी बार भी उसने पीछा नहीं छोड़ा तो हमने आखिर उसे बता ही दिया कि हम एक डॉक्टर हैं।

अब यह सुनते ही उसका चेहरा देखने जैसा हो गया।  वह रिसर्च और फॉर्मूला सब भूलकर अपनी पत्नी की बीमारी बताने लगा और मदद की गुहार करने लगा।
खैर हमने उसे जो भी सलाह देनी थी दी।  अंत में उसने स्वयं स्वीकारा कि सर क्या करें धंधा है , दो पैसे की आमदनी हो जाती है , लोगों को बहला फुसला कर।

 हम तो खैर जानते ही थे कि जिस तरह कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात कभी वापस नहीं आते , उसी तरह सर के उड़े बाल भी कभी वापस नहीं आते।