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Saturday, May 6, 2017

हमारे सुन्दर शहर के गंदे नाले , कितने दूषित कितने बदबू वाले ---


कितने गंदे होते हैं शहर मे बहने वाले गंदे नाले !
जाने कैसे रहते हैं नाले के पडोस मे रहने वाले !!
इक अजीब सी दुर्गंध छाई रहती है फिजाओं मे ,
जाने कौन सी गैस समाई रहती है हवाओं मे !!!.

यह बहुत ही दुःख की बात है कि एक विकासशील देश होने के बाद भी हमारे शहरों में अभी भी घरों और व्यवसायिक भवनों का का सारा सीवेज खुले नालों में बहता है। खुले बहने वाले नाले न सिर्फ देखने में एक अवांछित दृश्य प्रस्तुत करते हैं , बल्कि दुष्प्रबंधन के कारण  स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं।  इनसे निकलने वाली गैसें दुर्गन्ध तो फैलाती ही हैं , हमारे फेफड़ों पर दुष्प्रभाव डालकर हमें बीमार भी कर सकती हैं।  

सीवर गैसों में मुख्यतया हाइड्रोजन सल्फाइड होती है जिसके कारण सड़े अंडे जैसी दुर्गन्ध आती है। इसके अलावा अमोनिआ , मीथेन , कार्बोन, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी होते हैं लेकिन ये सभी गंधरहित होती हैं। सिर्फ अमोनिआ में तेज गंध होती है लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है।

ये गैस सीवेज में ऑक्सीजन के अभाव में एनारोबिक जीवाणुओं द्वारा सीवेज में मौजूद सल्फेट अणुओं पर पानी की रिएक्शन से बनती है। यह ताजे पानी में नहीं बनती लेकिन ठहरे हुए या धीरे बहाव वाले पानी में जहाँ पानी सड़ने लगे , वहां बनती है। इसलिए नालों में जहाँ पानी के बहाव में रुकावट होती है , वहां ज्यादा बनती है।  नालों में पड़े कूड़ा करकट , पॉलीथिन की थैलियां आदि रुकावट पैदा करती हैं। यदि नाला साफ हो , उसमे कोई रुकावट न हो और नाले के किनारों पर घास और पौधों से हरियाली हो तो पानी में प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन मिल सकती है।  ऐसे में ये गैस नहीं बनती।

लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि एक तो सरकार ने खुले नाले बना रखे हैं , दूसरे हमारे देश की जनता भी मूर्ख और अनपढों जैसी हरकतें करती है।  सभी नालों में सिर्फ सीवेज का पानी ही नहीं बहता , बल्कि शहर का बहुत सा कूड़ा करकट , विशेषकर पॉलीथिन की थैलियां भी भरा रहता है।  इससे न सिर्फ पानी के बहाव में रुकावट पैदा होती है , बल्कि ऑक्सीजन भी पैदा नहीं हो पाती। परिणाम होता है शहर की आबो हवा में दूषित गैसों का प्रदुषण। ज़ाहिर है , जैसा कर्म हम करते हैं , वैसा ही भरते हैं।

विश्व में शायद ही कोई विकसित देश हो जहाँ नाले खुले में बहते हों।  क्या यह प्रणाली इतनी मुश्किल है कि हम इसे नहीं अपना सकते। आखिर एक शहर में कितने नाले होते हैं जिन्हे ढका जाये तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। हालाँकि इसमें नागरिकों को भी जागरूक होना पड़ेगा ताकि नालों में कोई भी बाहरी वस्तु न डाली जाये।  नालों को प्रदूषित करना भी एक दंडनीय अपराध घोषित कर देना चाहिए। तभी हम विकास की दिशा में अग्रसर हो पाएंगे।   

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