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Wednesday, November 29, 2017

दिल्ली , जहाँ ट्रैफिक में रोंग इज राइट ---


प्रस्तुत है , दिल्लीवालों की यातायात सम्बंधित अनुशासनहीनता पर एक हास्य व्यंग कविता :


चौराहे पर जब लाल बत्ती हुई हरी ,

एक कार चालक ने कार स्टार्ट करी।

दूसरी ओर दूसरे ने बाइक पर किक लगाई ,

तीसरे ने तीसरी ओर से स्कूटी आगे बढाई ।


पहला अभी चला भी नहीं था ,

कि रोंग साइड से दूसरा और तीसरा।

दोनों चौराहे के बीच आ गए ,

और आपस में टकरा गए।


दूसरा बोला -- अबे दिखता नहीं है ,

मैं रैड लाइट जम्प कर रहा हूँ।

तीसरा गुर्राया -- चुप साले ,

मैं भी तो वही काम कर रहा हूँ।


देखते देखते दोनों में झगड़ा सरे आम हो गया ,

और इसी गर्मागर्मी में ट्रैफिक जाम हो गया।

मौका देख दोनों दुपहिया चालक तो खिसक गए ,

पर सही होकर भी कार वाले महाशय फंस गए।


तभी ट्रैफिक पुलिस वाले ने पुकार लगाई ,

अरै तू साइड में आ ज्या भाई।

ज़नाब लाइसेंस और गाड़ी की आर सी दिखाना ,

रैड लाइट जम्प करने पर भरना पड़ेगा जुर्माना।


इस तरह लाइट जम्प करने वाले तो ख़ुशी से जम्प करते हुए फ़रार हो गए ,

और नियमों का पालन करके भी बेचारे कार वाले महाशय गुनेहगार हो गए।


नोट : दिल्ली में लाल बत्ती हरी होते ही पहले चारों ओर से दोपहिया वाहन चालक रैड लाइट जम्प करना अपना अधिकार समझते हैं।

Sunday, November 12, 2017

दिल्ली का प्रदुषण ---


दिल जीवन भर धड़कता है ,
साँस जिंदगी भर चलती है ,
पर कभी अहसास नहीं होता ,
दिल के धड़कने का, साँसों के चलने का।
ग़र होने लगे अहसास,
दिल की धड़कन का ,
या साँस के चलने का ,
तो जिंदगी के इम्तिहान में ,
दिल और साँस, दोनों फेल हो जाते हैं।
ग़र नहीं चाहते अहसास ,
दिल की धड़कन का , साँसों की रफ़्तार का ,
तो पर्यावरण को बचाओ ,
गंदगी और प्रदूषण से, वरना
ना साँस चलेगी , ना रहेगी जिंदगी की आस।   

Saturday, November 4, 2017

लेह से पैंगोंग लेक -- लेह लद्दाख यात्रा का अंतिम पड़ाव :

लेह से १४० किलोमीटर दूर भारत चीन सीमा पर है विश्व की सबसे ऊँचाई पर बनी प्राकृतिक झील , पैंगोंग लेक। यहाँ जाने के लिए लेह मनाली हाइवे से होकर जाना पड़ता है। पैंगोंग जाने के लिए सुबह जल्दी निकलना पड़ेगा ताकि आप आराम से शाम तक वापस आ सकें। हाइवे को छोड़ने के बाद आप उबड़ खाबड रास्ते से होते हुए पहुँचते हैं १८००० फ़ीट पर स्थित चांगला पास जो विश्व का दूसरा सबसे ऊँचाई पर बना वाहन लायक सड़क है।  यह पूरे वर्ष खुला रहता है और अपेक्षाकृत आसान रास्ता है।  यहाँ इस रास्ते पर पहली बार बर्फ मिलेगी।  





चांगला पास :


चांगला पास पर खारदुंगला पास की तरह न तो भीड़ भाड़ थी और न ही तेज हवा।  हालाँकि बाहर का तापमान  -- ४ डिग्री था ।  यहाँ से निकलने के बाद ढलान शुरू हो जाती है।  रास्ते में कई गांव पड़ते हैं जिनमे सक्ती गांव बहुत हरा भरा और संपन्न गांव दिखाई दिया।





लगभग सुनसान सड़क से होकर आखिर आप पहुँच जाते हैं पैंगोंग लेक जो दूर से भी दिखाई देने लगती है। पास के बाद रास्ता अच्छा है और दृश्य बहुत सुन्दर।  अलग अलग रंग रूप के पहाड़ मन मोह लेते हैं । लेकिन पास पहुंचकर लेक की असली सुंदरता के दर्शन होते हैं।  गहरे नीले रंग का पानी कई रंगों में नज़र आता है।  आस पास के पहाड़ बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं।





लेक का पानी इतना साफ है कि किनारे से काफी दूर तक तल के पत्थर साफ नज़र आते हैं।  दिल करता है कि दौड़ कर पानी में घुस जाओ और दौड़ते चले जाओ।





विभिन्न भागों में पानी का रंग विभिन्न रंगों में नज़र आता है।  यह पानी में पहाड़ और आसमान की झलकती छवि के कारण होता है।





झील के किनारे अनेक रेस्ट्रां हैं जहाँ झटपट खाद्य पदार्थ और पेय आसानी से मिल जाते हैं।  झील किनारे बैठकर गर्मागर्म चाय पीने का मज़ा ही कुछ और है।





आम तौर पर सैलानी झील के शुरू में ही रुक कर झील का आनंद लेते  हैं।  यहीं पर सारी गतिविधियां भी हैं जैसे थ्री इडियट्स वाला करीना कपूर का स्कूटर जिस पर बैठकर लोग शौक से फोटो खिंचवाते हैं। लेकिन आप आगे लगभग ७ किलोमीटर तक जा सकते हैं।  आगे झील का पाट थोड़ा चौड़ा है।  यहाँ से दोनों ओर का नज़ारा भी बहुत सुन्दर है।   झील के आस पास कई टैंटों वाले कैम्प हैं जहाँ रात को रुका जा सकता है।  हालाँकि रात में हवा तेज चलती है और टैंट में ठण्ड लग सकती है।  फिर भी यहाँ एक रात रुकना अपने आप में एक बढ़िया अनुभव हो सकता है।


रेंचो स्कूल : करीब दो घंटे रुकने के बाद हम वापस चल पड़ते हैं लेह की ओर।  लेह पहुँचने से पहले फिल्म थ्री इडियट्स में दिखाया गया रैंचो स्कूल देखना न भूलें। यह पांच बजे तक  जनता के लिए खुला रहता है जिसमे कोई प्रवेश शुल्क नहीं है।  एक गाइड आपको उस दीवार तक ले जाएगी जहाँ फिल्म की शूटिंग हुई थी।


द्वार के पास ही बना है यह सुन्दर कैफे , हालाँकि कॉफी बनाने में बहुत समय लगता है।  इसलिए हम तो बिना पीये ही आ गए।





फिर भी एक फोटो तो ले ही लिया।





और ये है वो दीवार जिसका दृश्य आपको याद आ ही गया होगा।




लेह से वापसी का हवाई सफ़र बहुत शानदार है। पूरी पर्वतमाला बहुत पास नज़र आती है।



और पहाड़ों पर गिरी बर्फ ऐसे दिखाई देती है जैसे बर्फ का समुन्द्र हो। बस आपकी सीट खिड़की के पास होनी चाहिए जो आपके कहने से आसानी से मिल सकती है।  अंत में हम लौट आते हैं एक बेहद शानदार सफ़र से वापस घर की ओर।